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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?


'टाइम' पत्रिका ने साल के चर्चित चरित्र, ओसामा बिन लादेन को अस्वीकार करके, न्यूयॉर्क के मेयर रुडॅल्फ जूलियानी का चुनाव करके, बेईमानी का परिचय देने के वावजूद राजनीतिक नज़रिए से सही रही है। टाइम पत्रिका के लोग बखूबी जानते हैं कि समग्र विश्व में ओसामा को लेकर चर्चा हुई है, जूलियानी को लेकर नहीं! यहाँ तक कि जूलियानी, जिस शहर के हैं, उस शहर में भी उनके बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। जूलियानी खुद ही अपने हर इंटरव्यू में ओसामा का जिक्र करते रहे हैं। राजनीतिक दृष्टि से सही रहना, इन दिनों सबके लिए एक ज़रूरी मुद्दा बन गया है। दुनिया में जो कुछ भी घटता है, घटता रहे; लोग देखकर भी नहीं देखते, सुनकर भी नहीं सुनते, सिर्फ बड़े कायदे से वही वही कहते हैं, जो भला सुनाई दे। टाइम पत्रिका, चर्चित चरित्र को भले अस्वीकार कर दे, मगर उसने चर्चित प्रसंग, संत्रास को स्वीकार किया है। संत्रास! यह एक ऐसा शब्द है, जिसकी संज्ञा से अधिकांश लोग अनजान हैं। सन् 1984 में मुक्तराष्ट्र के राष्ट्रीय सचिव, जॉर्ज सुल्टेज ने कहा था- 'संत्रास है आधुनिक बर्बरता!'. उन्होंने यह भी कहा, 'संत्रास है, एक किस्म का राजनीतिक हमला! पश्चिमी सभ्यता और मूल्यबोध के लिए धमकी का और एक नाम है-संत्रास!' वगैरह-वगैरह! उन्होंने संत्रास की विस्तृत व्याख्या दी है, लेकिन उन्होंने इसे कोई 'संज्ञा' नहीं दी। उन्होंने यह भी कहा है कि चाहे जैसे भी हो। हम किसी भी संत्रास का दमन करेंगे। इस मामले में हम कोई भी भौगोलिक सीमा नहीं मानते। चूँकि भौगोलिक सीमा नहीं मानी गई, इसलिए एक दिन में ही अफ़ग़ानिस्तान और सूडान में बम बरसाए गए थे। दोनों देशों में दो हजार तीन सौ मीलों की दूरी है और जिस देश की तरफ से इन दोनों देशों पर बम बरसाए गए थे, वह देश इन दोनों देशों से लगभग आठ हज़ार मील दूर था। संत्रास की वजह के बारे में, खासकर फिलिस्तीनी लोगों के संत्रासी होने के पीछे क्या वजह है, यह पूछने पर सुल्टेज ने जवाब दिया था-'संत्रास बस, संत्रास होता है। इसके पीछे कोई वजह नहीं होती।'

हम वजह ढूँढ़ने क्यों जाएँ? हम जानते हैं, कौन मुक्तियोद्धा है, कौन संत्रासी! अमेरिका तो खैर जानता ही है, सर्वजानकार जो है! इस अमेरिका ने जिसे एक बार मुक्तियोद्धा घोषित किया था, अब उसे ही 'संत्रासी' कह रहा है। आज जो मुक्तियोद्धा है, कल वही संत्रासी हो जाएगा। कल जो संत्रासी था, आज वह मुक्तियोद्धा है! सन् 1969 से 90 तक पीएलओ, पैलेस्टाइन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन को संत्रासी दल कहा जाता था। न्यूयॉर्क टाइम्स में कभी यासिर अराफात को संत्रास का राजा तक कहा गया था। (सन् 1972 में म्यूनिख के ओलंपिक में ग्यारह यहूदी खिलाड़ियों की हत्या के पीछे यासिर अराफात के पीएलओ संगठन को जिम्मेदार ठहराया गया था। संत्रास का जवाब देने के लिए इज़राइल के प्रेसिडेंट, गोल्डामेयर ने भी जवावी संत्रास का भी कम आयोजन नहीं किया था)। इसी संत्रासी यासिर अराफात को ही नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया। अमेरिका के प्रेसिडेंट, बिल क्लिंटन, अपनी दाहिनी तरफ इज़राइल के प्रधानमंत्री और बाईं तरफ यासिर अराफात को खड़ा करके, मंद-मंद मस्कराते भी रहे। तीस और चालीस के दशक में चरमपंथी यहदी. जिओनिस्ट लोगों के इर्गुन दल को संत्रासी दल कहा जाता था। उन्हीं दिनों मेनोहेम वेगिन नाम के जिओनिस्ट नेता के नाम, यह भी ऐलान किया गया कि जो कोई उन्हें गिरफ्तार करा देगा, उसे एक लाख पाउंड का पुरस्कार दिया जाएगा। ऐसा कोई संत्रास नहीं है, जो बेगिन की अंडरग्राउंड इणुन पार्टी ने नहीं किया। बम मारकर, इसी बेगिन ने ही डेविड होटल उड़ा दिया था। लेकिन दूसरे महायुद्ध में यहूदी-विधन घटने के बाद, यहूदी के प्रति पश्चिमी देशों की माया-मुहब्बत बढ़ गई। पूरी घटना ही बदल गई। इन्हीं जिओनिस्ट लोगों को मुक्तियोद्धा नाम दिया गया। मेनोहेम बेगिन, सत्तर के दशक के अंत में, इज़राइल के प्रधानमंत्री भी निर्वाचित हुए और वे ही इज़राइल के पहले प्रधानमंत्री थे। जिन्होंने मिस्र के साथ पहला शांति-समझौता किया था। सन् 1985 में अमेरिका के प्रेसिडेंट, रोनाल्ड रेगन ने चंद दाढ़ीवाले पगड़ीधारी लोगों का व्हाइट हाउस में सादर स्वागत करते हुए, पत्रकारों से कहा था-'दीज़ आर द मोराल इक्विवलेंट ऑफ अमेरिकाज़ फाउंडिंग फादर्स-' दाढ़ीवाले, पगड़ीधारी लोग, अफगान मुजाहिदीन थे। हाथ में बंदूक थामे, उन लोगों ने दुश्मन सोवियत के खिलाफ जंग की थी। इसीलिए वे लोग, 'मोरल इक्विवलेंट ऑफ अमेरिकाज़ फाउंडिंग फादर' कहलाए। इसके बाद, सन् 1998 में यह घटना भी पलट गई। अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन गिरोह को निश्चिन्त करने के लिए पंद्रह मिसाइल बरसाए, जो लोग कुछ ही वर्षों पहले तक जॉर्ज वाशिंगटन और टॉमस जेफरसन के मोरल इक्विवलेंट थे।

संत्रास को जैसे जॉर्ज सुल्टेज़ कोई संज्ञा नहीं दे पाए, अधिकांश शब्दकोश भी इसे कोई संज्ञा देने में असफल रहे हैं। वहाँ भी संत्रास या संत्रासवाद की सिर्फ व्याख्या ही दी गई है। संज्ञा नहीं! 'टेरर' शब्द का प्रयोग, सबसे पहले फ्रेंच देश में शुरू हुआ। फ्रांसीसी क्रांति के बाद (1793-1794) मैक्सिमिलिएन रॉबेसपियर के नेतृत्व में, फ्रांसीसी राजतंत्र के पृष्ठपोषकों के अबाध निधन-यज्ञ के समय को 'टेरर' कहा गया। इसी टेरर से टेररिज्म, टेररिस्ट शब्द आया! संसद शब्दकोश के मुताबिक, संघबद्ध तरीके से भय दिखाकर, कब्जा करने की नीति को संत्रासवाद कहा जाता है। ऑक्सफोर्ड और कोलंबिया शब्दकोश कहता है कि संत्रास का मतलब है, भयंकर आतंक! संत्रासवाद है, मूलतः राजनीति कारण से जनगण पर उग्र हमला करना या आक्रमण की धमकी देना। वेबस्टर शब्दकोश में संत्रासवाद के बारे में जरा और खलासा करके कहा गया है कि संत्रास के माध्यम से सरकार चलाना या संत्रास के माध्यम से सरकार का विरोध करना। लेकिन कहीं भी इसके उद्देश्य के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया। वैसे इसका उद्देश्य भी बिल्कुल अलग है। यह भी कहीं नहीं कहा गया है कि यह अन्यायपूर्ण या गलत काम है।

संत्रास कितने प्रकार के होते हैं और कौन-कौन से होते हैं, इसका भी किसी शब्दकोश में जिक्र नहीं है, लेकिन इसके प्रकार आसानी से निर्धारित किए जा सकते हैं। संत्रास पाँच प्रकार के होते हैं। भयावहता के क्रम से कहूँ, तो पहला-राष्ट्रीय संत्रास! दूसरा, धार्मिक संत्रास! तीसरा दुर्नीतिग्रस्तों का संत्रास! चौथा, मानसिक रोगग्रस्त लोगों का संत्रास और पाँचवाँ गैरसरकारी समूह का राजनीतिक संत्रास! इन पाँचों संत्रासों में से कोई भी संत्रास, दूसरे संत्रास में परिणत हो सकता है, जिसे कहते हैं. जरूरत के मताबिक चोला बदलना। बहरहाल रूप बदले या न बदले. दनियाभर के इतिहास में सबसे खौफनाक संत्रास का नाम है-राष्ट्रीय संत्रास। इसका कोई मुकाबला नहीं है। राष्ट्र जब व्यक्ति या संगठनबद्ध या धार्मिक संत्रास में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सहयोग पर उतरता है, तो आग में मानो घी पड़ जाता है। राष्ट्र तो अकेला ही सौ के बराबर है। इसके बावजूद गैर-सरकारी संगठन या व्यक्ति के जरिए राष्ट्रीय संत्रास चलाने की काफी घटनाएँ होती हैं। अमेरिका के वर्णवादी संत्रासी संगठन, कू क्लूस क्लान को, राष्ट्र ने जब भी मदद की है, संत्रास सौ गुने ज़्यादा बढ़ गया है। लैटिन अमेरिका में सरकारी हत्याकांड में किराए के खूनी इस्तेमाल किए जाने का काफी रिवाज है। अफ़ग़ानिस्तान और मध्य अमेरिका में सी आइ ए दुर्वृत्त और नशाखोरों को किराए पर नियुक्त करती है और उन्हें संत्रास के काम में लगाती थी। नशीले द्रव्य और हथियार, दोनों एक साथ सप्लाइ किए जाते थे। अफ़ग़ानिस्तान में मुजाहिदीन, निकारागुवा में कॅन्ट्रा और अब अमेरिका, अफ़ग़ानिस्तान के नॉर्दर्न एलाएन्स को इस्तेमाल कर रहा है। सोवियत के खिलाफ अफ़गानों को भिड़ाकर अमेरिका को क्या मिला? बीस लाख अफ़गानों की मौत, छः लाख अफ़गानों का देशत्याग, बीस हज़ार सोवियत नागरिकों की मौत! इस बार के संत्रास में भी कुल अफगानों की मौत, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की कुल मृत्यु-संख्या को पार कर गई है। राष्ट्रीय संत्रास जैसा भयावह, अन्य कोई संत्रास नहीं है। एक किस्म का संत्रास अन्य किस्म के संत्रास का रूप ले सकता है-यह चर्चा चल रही थी। बंगलादेश में राष्ट्रीय संत्रास, हमेशा धार्मिक संत्रास का रूप ले लेता है। मुसलमान, हिंदुओं पर हमला करते हैं। हिटलर के ज़माने में जर्मनी में भी यही हुआ था। यहूदी निधन में ईसाई मदमस्त हो उठे थे। शिया, सुन्नी को मारने लगा, सुन्नी, शिया को। किसी ज़माने में समूचे यूरोप में कैथोलिक लोग प्रोटेस्टेंट लोगों की जान के दुश्मन बने रहे, प्रोटेस्टेंट, कैथोलिक की हत्या करते फिरे। इरान में शिया लोग, बहाइयों के कत्ल में जुटे रहे। मुसलमान, ईसाइयों को मारता-पीटता रहा, ईसाई, मुसलमानों का खून करते रहे। यह था धार्मिक संत्रास! दरअसल बीसवीं शती में धार्मिक संत्रास पहले के मुकाबले काफी कम था। मध्य युग की याद आते ही, भला कौन नहीं काँप उठता है? प्रेसिडेंट बुश शायद 'क्रूसेड' शब्द का इतिहास नहीं जानते, इसीलिए इतनी सहजता से इस शब्द का उच्चारण कर बैठे। तीसरा भयावह संत्रास है-दर्नीतिग्रस्त का संत्रास! माफिया लोगों के इतिहास का जिक्र करके, इसकी व्याख्या की जा सकती है। इटली में राष्ट्रीय संत्रास ने जब दुर्नीतिग्रस्त लोगों के संत्रास का रूप ले लिया, तभी इसने विकराल रूप धारण किया। सिसिली से माफिया काफी अर्से पहले ही सफर पर निकल चुका है। अभी भी कोई कमजोर राष्ट्र हत्थे चढ़ते ही, एकदम से सिर उठाते हैं।

बंगलादेश में माफिया का नाम है-चंदेबाजी! यह मूलतः गैर-सरकारी होता है। इसका सरकारी नाम है-परसेंटेज! चौथा संत्रास है-मानसिक रोगग्रस्त लोगों का संत्रास! बीमार दिमाग लोग इस किस्म का संत्रास फैलाते हैं! राष्ट्र प्रधान या समाज के नामी-दामी लोगों का खून करके ध्यानाकर्षण करना ही उनका मक़सद होता है! स्वीडन के प्रधानमंत्री, उलफ पालमे को किसी नशेबाज़ पागल ने कत्ल किया था। अमेरिका के प्रेसिडेंट, जॉन एफ केनेडी का भी, किसी पागल-किस्म के शख्स ने ही खून किया था। इन पाँचों संत्रासों में, जिस संत्रास को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती है, वह है राजनीतिक संत्रास! हालाँकि इस किस्म के संत्रास में ही सबसे कम मौतें होती हैं। यही सबसे कम भयंकर भी है। सन् 1998 के रैंड कार्पोरेशन के सर्वेक्षण में यह नज़र आया कि पिछले दस सालों में जितने भी संत्रास घटे, उसमें से पचास प्रतिशत संत्रास के पीछे कोई और वजह। नहीं थी, कोई राजनीतिक वजह भी नहीं थी। फिर भी राजनीतिक संत्रास को ही दुनिया के मंच पर सबसे ज़्यादा अहमियत मिलती है, क्योंकि राजनीतिक संत्रासी काफी धूमधाम से या किसी घटना या दुर्घटना के जरिए अपना वक्तव्य पेश करते हैं, क्योंकि उन लोगों को अपना वक्तव्य या माँग आम लोगों को सनाने की और कोई व्यवस्था नहीं होती। आमतौर पर मुसाफिरों से भरा जहाज छीनकर, जहाज को पूरी तरह ध्वंस कर देने की धमकी देकर, वे लोग अपनी माँगें पेश करते हैं। अत्याचार के शिकार अरबों ने ही सबसे पहले हवाई जहाज छीनने की घटना को अंजाम दिया। यह तरीका उन्हीं लोगों की खोज है! लोगों की छिनताई की इस घटना ने इतनी बुरी तरह चौंका दिया कि वे लोग उनका वक्तव्य सुनने को लाचार हो गए। पेरु के जापानी दूतावास के लोगों को जिम्मेदार ठहराकर, वामपंथी विप्लवी दलों ने भी अपनी माँगें पेश की थीं। कोलंबिया में भी अपहरण हुआ है और बंदी लोगों की मुक्ति की माँग की गई है। हमास, अल-कायदा, इस्लामिक जिहाद, इसी किस्म के दहशतगर्द गिरोह हैं। इज़राइल की सड़कों पर हमास के सदस्यों ने फिर फिलिस्तीन की आज़ादी की माँग करते हुए, आत्मघाती बमों का इस्तेमाल किया है।

न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को धज्जी-धज्जी कर देनेवाले, अल-कायदा संगठन का संत्रास भी पाँचवें किस्म के संत्रास में पड़ता है। यह गैर-सरकारी संगठन का राजनीतिक संत्रास है। इन संत्रासियों की माँग है कि मध्यप्राच्य में अमेरिका और इज़राइल का संत्रास बंद किया जाए। लेकिन इस किस्म का संत्रास, देखने-सुनने में भले भयंकर हो, जैसा कि मैंने पहले कहा है, यही सबसे कम भयंकर है। सबसे ज्यादा भयंकर है-राष्ट्रीय संत्रास! राष्ट्र जितने लोगों का खून कर सकता है, उतना और कोई भी नहीं कर सकता। पिछले पंद्रह महीनों में फिलिस्तीनी उग्रवादी संगठन ने जितने लोगों को कत्ल किया है, उससे चौगुना ज़्यादा इज़राइल राष्ट्र ने किया है। अतीत से अगर उद्धरण दिया जाए, तो ऐसे बहुतेरे उदाहरण मिल जाएंगे। ब्रिटिश सरकार ने जितने आइरिश या भारतीय लोगों की हत्या की थी, उग्रवादी संगठन के तौर पर मशहूर आई आर ए आइरिश रिपब्लिकन आर्मी या आज़ाद हिंद फौज ने उतने ब्रिटिश लोगों की हत्या नहीं की। पी एल ओ, आई आर ए, जर्मनी के बादेर मेनहफ, इटली के रेड ब्रिगेड, कुर्दिस्तान के पी के के वगैरह संत्रासी संगठनों ने जितने इंसानों की हत्या की, उनसे लाखों गुना ज़्यादा हत्या विभिन्न संत्रासी राज्यों ने की है। ये संत्रासी राष्ट्र हैं-अर्जेन्टिना, ब्राजील, चिली, इंडोनेशिया! अमेरिका की मदद से बतिस्ता ने क्यूबा में किया, अनास्तासिओ ने निकारागुवा में किया। और ज़्यादा अतीत में जाएँ तो राष्ट्रीय संत्रास का और भी कुत्सित चेहरा नज़र आता है। अमेरिका का इतिहास कोलम्बस से शुरू नहीं हुआ। मुझे ख़बर है कि यूरोपीय राष्ट्रों ने किस तरह अजटेक, माया, इनका-सभ्यताओं को ध्वंस किया, किस तरह रेड इंडियन लोगों की हत्या की, कैसे काले लोगों को पकड़-पकड़कर, बेड़ियों में जकड़कर, क्रीतदास बनाने को खींच लाए। ऑस्ट्रेलिया का इतिहास वहाँ से शुरू नहीं होता। जब कैप्टन कुक की नाव उस किनारे पर लगी। इससे पहले भी वहाँ का इतिहास विद्यमान था। कहा जाता है कि वास्को द गामा ने भारत का आविष्कार किया, भारत क्या इसके पहले गुमनाम था? इतिहास कोई भूल जाता है, कोई नहीं भूलता।

असल में यह देखना ज़रूरी है कि कब और कौन लोग उग्रवादी हो जाते हैं और क्यों हो जाते हैं। अमेरिका किसी भी संत्रास की कोई वजह नहीं खोजता। अमेरिका संत्रास दमन करना चाहता है। मारणास्त्र इस्तेमाल करके, इंसानों का खून करता है। लेकिन जैसे बीमारी की वजह खोज निकालने के बजाय, सिर्फ मॉरफिन देकर सुलाए रखने या तकलीफ दूर करने के लिए दवा खिलाने से कोई फायदा नहीं होता। उसी तरह बम बरसाकर भी सचमुच कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि बमों की बरसात से इंसान के अंदर क्रोध का जन्म होता है और उग्रवाद को जन्म देने के लिए क्रोध एक बड़ी वजह होती है। मूलतः जो लोग वंचित हैं, जिनके अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, जिन लोगों को बेवजह सज़ा झेलना पड़ती है, जो लोग नाउम्मीदी के अँधेरे में पड़े हैं, जिन लोगों की आँखों के सामने कोई भविष्य नहीं है। कष्ट झेलते-झेलते जिन लोगों की पीठ दीवार से जा लगी है, वे ही लोग उग्रवादी हो उठते हैं या उग्रवादी संगठन में अपना नाम लिखाते हैं। यह बिल्कुल वैसा ही है, जैसे माँ-बाप के लाड़-प्यार के बजाय, गाली-गलौज, लात-घूसे-मुक्के खाते-खाते बड़े होते हुए लड़के का आवारा या बदमाश हो जाना। यह लड़का भी अपने बेटों को अनादर से पीट-पीटकर बड़ा करता है। इतिहास के पन्ने उलट-पलटकर देखें तो पता चलता है कि जो लोग आज संत्रास राज चला रहे हैं, कल वे ही लोग संत्रासी लोगों के हमले का शिकार होकर, बेमौत मर जाते हैं। सच तो यह है कि संत्रास बेहद संक्रामक चीज़ है। एक गाल पर थप्पड़ खाकर, दूसरा गाल आगे बढ़ा देने की बात, पवित्र ग्रंथों में उपदेश के तौर पर भले लिखी हो, मगर इंसान के चरित्र में हरगिज नहीं है। जाने कब तो सुना था कि दुनिया भर के चौबीस या चालीस दरिद्र देशों के पास जितनी दौलत है, उतना अमेरिका के एक या पाँच अमीरों के पास है। दुनिया में कुल पाँच सौ नब्बे विलियनियर हैं, ज़्यादातर अमेरिकी! यह विषमता सबसे बर्दाश्त नहीं होती। किसी-किसी में क्षोभ या क्रोध जन्म लेता है। आर्थिक बदहाली उन लोगों को लापरवाह बना देती है। तुम खाते-पचाते रहो, हम न खाएँ, अब यह नहीं होगा। यह कुछ अस्वाभाविक भी नहीं है। समता के देश, उत्तरी यूरोप में भी पड़ोस के घर का कोई शख्स अगर चमचमाती मर्सिडीज़ बेंज खरीदता है, तो इस घर के बंदे की त्योरियाँ चढ़ जाती हैं-मैं अभी तक वॉक्सवागन चला रहा हूँ और तुम, गुरु मर्सिडीज खरीदनेवाले कौन होते हो, जी? और वह फौरन टैक्स-ऑफिस में ख़बर दे देता है कि-कमबख्त पड़ोसी को इतने रुपए कहाँ से मिले, यह पता किया जाए। अगर उत्तरी यूरोप के देशो में ऐसा होता है तो अमीर-गरीब के आकाश-पाताल के फासले में, ऐसा क्यों नहीं होगा? आर्थिक वजह, राजनीतिक वजह का रूप ले लेती है। मैं पहले ही कह चुकी हूँ संत्रास की जड़ों तक पहुँचना होगा। संत्रास को अगर जड़ से न मिटाया गया, तो संत्रास मौजूद रहेगा, संत्रास फैलता जाएगा। संत्रास की पद्धति और-और बढ़ती जाएगी। पहली बार जहाज अपहरण के बाद, अन्यान्य उग्रवादियों ने भी यह तरीका अपनाया। एसिड फेंकने की हरकत, कब, किसने, कहाँ शुरू की थी, पता नहीं, लेकिन, बंगलादेश में यह तरीका बेहद जनप्रिय है। हाथ-पाँवों की नस काटना, बंगलादेशी कट्टरवादियों का संत्रासी तरीका है। माफिया लोगों का अंगूठा काटने का तरीका, इटली से चलकर, सुदूर चीन तक आ पहुँचा है। लेकिन लोग चाहे जो भी तरीका इस्तेमाल करें, सबसे बड़ी मिसाल रचता है, सरकारी संत्रास का तरीका! आज बीएनपी ने जिस तरीके का संत्रास अपनाया है, कल जब अवामी लीग सत्ता में आएगी, यही तरीका अपनाएगी।

गैरसरकारी राजनीति संगठनों में अगर विप्लवी आदर्श मौजूद न हों, तो उलटा-पलटा संत्रास रचकर, कोई फायदा नहीं होता। फिर भी कोई-कोई बागी बेतुके संत्रास की तरफ मुड़ जाते हैं, कोई-कोई नहीं जाते। इसी वजह से यूरोप के दो विप्लवी दल-मार्क्सवादी और ऐनार्किस्ट लोगों में भी विरोध रहा। मार्क्सवादी लोग अगर संत्रास मचाते तो उसके पीछे आर्थिक-सामाजिक कारण होता। वैसे चीन, विएतनाम, अलजीरिया, क्यूबा के बागियों के उग्रवाद के पीछे वृहद् और महान आदर्श थे।

समय बदल चुका है। इस युग में राजनीतिक संत्रास के लिए जहाज़ छीनने की ज़रूरत नहीं पड़ती। अपना वक्तव्य या माँग पेश करने के लिए, किसी जहाज़ को, किसी ऊँचे टावर के पेट के अंदर घसेड देने की कोई जरूरत नहीं होती। इससे अनगिनत लोगों के प्राणनाश के अलावा और कछ अर्जित नहीं होता। जहाँ उन्नत ज्ञान की संचार-व्यवस्था है, वहाँ आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके, संगठन तैयार कर लेना। दूसरों को राजनीतिक आदर्शों से अनप्राणित करना, समची दनिया में अपने विचार-मंतव्यों का प्रचार करना सरासर संभव है। वैसे संत्रास दमन के लिए भी अगर प्राचीन पद्धति इस्तेमाल की जाए, तो भी अनगिनत लोगों के प्राणनाश के अलावा और कुछ नहीं मिलता। प्राचीन काल में वल्लम का इस्तेमाल किया जाता था। अब मिसाइल का। इन्हीं सब कारणों से आम इंसान में क्षोभ जन्म लेता है। इंसान को नए-नए उग्रवादी संगठन तैयार करने की प्रेरणा मिलती है। राजनीतिक संत्रास की राजनीतिक भाव से ही समीक्षा की जानी चाहिए, मिसाइल के जरिए नहीं। विषमता की मीमांसा, विषमता मिटाकर, समता के जरिए की जानी चाहिए। मिसाइलों से कोई फैसला नहीं होता। कानून अपने हाथ में लेने से मुसीबत होती है! तब और-और लोग भी कानून अपने हाथ में ले लेते हैं। सच तो यह है कि मीमांसा की जिम्मेदारी जातिसंघ पर छोड़ देनी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय संत्रासियों के बारे में न्याय की जिम्मेदारी, अंतर्राष्ट्रीय अदालत को सौंप देना चाहिए। इन सबको ठोकर मारकर-'आई वांट हिम डेड और एलाइव, आइदर वे!'-यह घोषणा करना भयंकर गुना है। ऐसी घोषणा असभ्यता के अलावा और कुछ नहीं है। किसी भी दूसरे देश पर हमला करना, अंतर्राष्ट्रीय कानून तोड़ना अमेरिकी सरकार के इस गुनाह की वजह से लोगों में क्षोभ बढ़ रहा है, बढ़ता रहेगा। इराक की जनता क्षुब्ध है! बम बरसाकर, अमेरिका ने इराक का ढाँचा ही ध्वंस कर दिया है, हालाँकि पचहत्तर प्रतिशत बम, लक्ष्यभ्रष्ट ही हुए। इसमें निरीह लोगों की मौत के अलावा और कछ नहीं हआ। इन दिनों बच्चे अपुष्टि भगत रहे हैं, इंसान भखों मर रहे हैं. अधिकांश लोग बेकार बैठे हैं. पेडों तले पनाह ले रहे हैं। अस्पतालों में दवाएँ नहीं हैं। बाजारों में खाना नहीं है। बमबाजी में पाउडर दूध के कारखाने नष्ट हो गए हैं। इसलिए दूध का भी अकाल पड़ गया है। बेचारे दीन-हीन गरीब बच्चे, सिर्फ पानी पी-पीकर बड़े हो रहे हैं, वह पानी भी दूषित! पीने के विशुद्ध पानी की सप्लाई का इंतज़ाम तोड़-फोड़ दिया गया है। गाँव-गाँव में लोग पोखर-तलैया का दूषित पानी पी-पीकर बीमार हो रहे हैं। लेकिन बीमारियों का कोई इलाज नहीं है। अस्पतालों में रोगी हैं, डॉक्टर भी हैं, मगर यंत्र-पाति, सरंजाम नहीं है, दवाएँ नहीं हैं। आज इराक, अमेरिका के जंगी विमानों से बरसाए हुए बम और ओवल ऑफिस से फेंके गए एमबरगोर बम-दोनों का ही कहर झेल रहा है। अमेरिका ने कुर्दो के प्रति मुहब्बत दिखाई थी। वही दीन-दरिद्र कुर्द लोग, इराक के उत्तरांचल में जैसे पहले थे, वैसे ही पड़े हुए हैं! उसी तरह का अभाव, अनाहार, अशिक्षा वे लोग आज भी झेल रहे हैं। सद्दाम हुसेन का खून करने को आमादा अमेरिका ने इराक के नामी कलाकार, लयला बिन अत्तार का खून कर दिया। सद्दाम अभी भी ज़िंदा हैं। गद्दाफी को मारने जाकर, मार डाला उनकी चार साल की बेटी को। कैस्ट्रो को मार डालने के इरादे से जाने कितने लोगों का रक्तपात कर डाला। सूडान के किसी केमिकल कारखाने को ध्वंस करने की ठानी और ध्वंस कर डाला दवा का एक पाक-साफ कारखाना!

पश्चिमी दुनिया ने अरबी शब्द 'जिहाद' का अनुवाद किया है-पवित्र युद्ध ! लेकिन किसी-किसी का कहना है. इसका सटीक अनवाद है-संग्राम! यह संग्राम, संत्रास के जरिए होता है और संत्रास के बगैर भी होता है। जिहाद का अंतर्राष्ट्रीय संत्रासी चरित्र तो चार सौ साल पहले ही लुप्त हो चुका था। लेकिन अभी वह दुबारा बदन झटककर, नए सिरे से लौट आया है। हाँ, अस्सी के दशक में लौट आया है और यह लौटा है, अमेरिका की मदद से! सोवियत जब अफ़ग़ानिस्तान में दाखिल हुए, पाकिस्तान के स्वेच्छाचारी शासक, जियाउल हक को नास्तिक देश के खिलाफ जिहाद शुरू करने का अच्छा-खासा मौका मिल गया। अमेरिका ने भी देखा, उसे भी दुनिया के एक बिलियन मुसलमानों को भिड़ा देने का ईश्वर-प्रदत्त मौका मिल गया, रीगन की भाषा में जिसे कहते हैं-'एविल इम्पायर' के खिलाफ! अफ़ग़ानिस्तान में रुपए उँडेले जाने लगे; सी आइ ए अन्यान्य मुस्लिम देशों से जिहादी जुटाने के लिए सफ़र पर निकल पड़े! जिहाद का पुनरुत्थान इसी ढंग से तो हुआ! अफ़ग़ानिस्तान में प्रागैतिहासिक जिहाद के जब अंडे बिछाए गए, उन्हीं अंडों से अगर प्रागैतिहासिक डायनोसोर किस्म का प्राणी सिर उठाए, तो इसमें आखिर किसका कसूर है? तालिबान ख़ामख़ाह तो पैदा नहीं हुए! उन्हीं अंडों के ही बच्चे हैं न! तालिबान के ज़्यादातर किशोर बच्चे, शरणार्थी कैम्पों में अभाव, अनाहार, अशिक्षा, कुशिक्षा में ही जवान हुए हैं।

संत्रास के बारे में तरह-तरह की व्याख्या देते हुए, एक और तरह के संत्रास की बात तो बताई ही नहीं! वैसे इस संत्रास को नंबर वन में डाला जा सकता है। इस संत्रास का नाम है-लिंग-आधारित संत्रास! इसका मूल उद्देश्य है-आधिपत्य! वैसे यह संत्रास उद्देश्य बिना भी होता है। संत्रास के लिए ही संत्रास होता है। इसके अलावा, इसके पीछे राजनीतिक, आर्थिक, मानसिक वजहें भी होती हैं। यह संत्रास मर्द, औरत पर बरसाता है! घर-घर के बाहर हर जगह! यह संत्रास वह युद्धक्षेत्र, खुले मैदान, रास्ता-घाट, दफ्तर-अदालत, धान-खेत, पाट-खेत, निर्जन जगह, हाट-बाट-सभी जगह बरसाता है। यह संत्रास वह बेहिचक अंजाम देता है और यह संत्रास मचानेवाले मर्दो के खिलाफ ज़्यादातर कोई विचार नहीं होता। इसकी वजह यह है कि अधिकांश मर्द, आज भी इसे संत्रास नहीं मानते। मर्दो की कौन कहे, ज्यादातर औरतों को भी जानकारी नहीं है कि यह संत्रास है। पश्चिमी मानवाधिकार संस्थाएँ भी इसे 'लोकल कल्चर' कहकर कतरा जाती हैं। उन लोगों को यह डर लगा रहता है कि दूसरों के कल्चर की समालोचना करने से, कहीं जातिविद्वेषी होने की धमकी न खाना पड़े। लेकिन जो लोग समालोचना करते हैं, जो लोग 'कल्चर' या शानदार परंपरा नामक इस खौफनाक संत्रास को जड़ समेत उखाड़ फेंकना चाहते हैं, उन लोगों को कत्ल हो जाना पड़ता है, जेल की रोटी तोड़ना पड़ती है। या फिर निर्वासन में धकेल दिया जाता है! मेरे कंठ को स्तब्ध करने के लिए राष्ट्रीय, धार्मिक और राजनीतिक संत्रास किस क़दर काम कर रहा है, आज यह इतिहास है! इतिहास कोई भूल जाता है। कोई नहीं भूलता।



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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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